Wednesday, April 5, 2017

सौदा बुरा नहीं है


                                                                      

फिर वही ग्वालियर का किला 
फिर उसी कमरे में 
झरोखे से फिसलती , 
मन और तन को सहलाती धूप I
सूखे पत्तों के आपस में टकराने की आवाज़ 
घर के पीछे वाले रास्ते पर सब के साथ 
घूमना - घुमाना ,
हँसी, बातें और मौन I 
किले में चारों तरफ बिखरे फालसई , लाल , पीले रंग I 

पर इस बार , पत्तों की आवाज़ 
रास्ता, बातें, मौन और यह सारे रंग 
 जो किले की गोद में बिखरे पड़े हैं I
फीके हैं I

तुम इनकी खनक, चटक, गर्माहट और संगीत लेकर 
आराम से कहीं बैठे हो I
अगर तुम मुझे ये सब लौटा दो I
तो पक्का वादा है -
जो खनक, चटक, गर्माहट और संगीत 
मैंने तुम से चुराया  है ,
वापस कर दूंगा 
सोचो मत , 
सौदा बुरा नहीं है I 

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