फिर वही ग्वालियर का किला
फिर उसी कमरे में
झरोखे से फिसलती ,
मन और तन को सहलाती धूप I
सूखे पत्तों के आपस में टकराने की आवाज़
घर के पीछे वाले रास्ते पर सब के साथ
घूमना - घुमाना ,
हँसी, बातें और मौन I
किले में चारों तरफ बिखरे फालसई , लाल , पीले रंग I
पर इस बार , पत्तों की आवाज़
रास्ता, बातें, मौन और यह सारे रंग
जो किले की गोद में बिखरे पड़े हैं I
फीके हैं I
तुम इनकी खनक, चटक, गर्माहट और संगीत लेकर
आराम से कहीं बैठे हो I
अगर तुम मुझे ये सब लौटा दो I
तो पक्का वादा है -
जो खनक, चटक, गर्माहट और संगीत
मैंने तुम से चुराया है ,
वापस कर दूंगा
सोचो मत ,
सौदा बुरा नहीं है I
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